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गोदी-विरोधी पत्रकारों के नाम एक खुला पत्र

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  प्रिय गोदी - विरोधी पत्रकारगण , एक जागरूक नागरिक और मीडिया का छात्र होने के नाते , मौजूदा परिदृश्य मुझे बहुत ही चिंतित करते हैं।   संवादहीनता की यह स्थिति देश और समाज के लिए बड़ी विकट होती जा रही है। एक तरफ़ चाटूकारों की फ़ौज है , तो दूसरी तरफ़ अतिसंवेदनशील पत्रकारों की। मेरा यह पत्र चाटूकारों के लिए नहीं बल्कि सच दिखाने और बताने वालों के लिए है। आपसे मेरी एक गंभीर शिकायत है। आपकी पत्रकारिता में तंज़ दिखता है। संवेदनाएँ दिखती हैं। क्रोध , कुंठा और झुँझलाहट दिखती है। मेरी राय में एक पत्रकार के शब्दों में निरपेक्ष सच दिखना चाहिए , सभी पक्षों की बात दिखनी चाहिए , लेकिन भावनाएँ नहीं दिखनी चाहिए , आपकी राय नहीं दिखनी चाहिए। झूठ , प्रपंच , पाखंड , अंध - भक्ति , गुंडागर्दी और सांप्रदायिक विद्वेष के इस दौर में हर सोच सकने वाला इंसान अवसादग्रस्त है , इसमें कहीं से कोई दो राय नहीं है। लेकिन आप पत्रकार हैं। अवसादग्रस्त दिखने का प्रिविलेज आपके पास नहीं ह...

भाषा को एक ऐसा दरिया होने की ज़रूरत है, जो दूसरी भाषाओं को भी ख़ुद में समेट सके

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अपनी ज़िंदगी के 20 वें वसंत तक मैं भी अपने कई बिहारी साथियों की तरह Vast को भास्ट , शाम को साम , ढोल को ढ़ोल , सड़क को सरक और Fool को फूल बोलता रहा।   अफ़सोस इस बात का नहीं था कि मैं ग़लत बोलता या ग़लत लिखता था , तकलीफ़ इस बात की थी कि मुझे यह पता ही नहीं था कि मेरे लिखने और बोलने में कितनी ग़लतियाँ थीं। इसके लिए ज़िम्मेदार किसे ठहराया जाए ? अपनी कमअक़्ली को या पढ़ाई - लिखाई की उस परिपाटी को , जिसमें मैं बड़ा हुआ ? अगर आप भी मेरे ही आयुवर्ग (30-35 वर्ष ) और मेरी ही पृष्ठभूमि के हैं , तो आपको बचपन में रट्टा मारकर वर्णमाला के अक्षरों को याद करते हुए यह बोलना याद होगा - य , र , ल , व , ह , तालव्य स , दन्त स , मूर्धन्य स , अच्छ , त्र , ज्ञ। और ज़रा वह भी याद कीजिए , W से व , Bh से भ। किताबों में कभी नहीं बताया गया कि V से भ होता है , लेकिन हम इंडिया इज अ भास्ट कंट्री बोलने के आदि हो गए थे। इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि उच्चारण का सूत्...