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Jai Bheem का विरोध हमारे समाज के वैचारिक पतन का द्योतक है

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जिस कहानी को देखकर दिल पसीझ उठे , वही कहानी किसी की आँखों में किरकिरी कैसे बन सकती है , यह अकल्पनीय लगता है। जय भीम को लेकर हो रहा बवाल एक टीस पैदा करता है। आख़िर जिस समाज की नींव गाँधी , आंबेडकर , नेहरू और पटेल जैसे अनेक दूरद्रष्टाओं ने रखी , वह समाज वैचारिक पतन की ढलान पर इतना कैसे गिरता चला गया कि उसे एक कहानी कचोटने लग गई। क्या आप यह नहीं मानते कि पुलिस को केस बंद करने के असंवेदनशील और अन्यायपूर्ण तरीकों के बजाय वाकई में अपनी ड्यूटी करके उसके सही निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए? क्या आप यह नहीं मानते कि सरकार और प्रशासन की आँखों में सबका दर्जा बराबर होना चाहिए? क्या आप यह नहीं मानते कि चाहे आपका वोट किसी के पक्ष में पड़ा हो या विपक्ष में, यह पहलू आपको इंसाफ़ मिलने की राह में रोड़ा साबित नहीं होना चाहिए? कोई नई कहानी तो नहीं है यह! वही कहानी है जो हम देखते आए हैं। एक तबका है जो  बदक़िस्मत और  मज़लूम है। एक तबका है जो  ताक़तवर और  ज़ालिम है।   मज़लूमों की सुनने वाला कोई नहीं है , और ऐसे में     से उस तबके को