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गोदी-विरोधी पत्रकारों के नाम एक खुला पत्र

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  प्रिय गोदी - विरोधी पत्रकारगण , एक जागरूक नागरिक और मीडिया का छात्र होने के नाते , मौजूदा परिदृश्य मुझे बहुत ही चिंतित करते हैं।   संवादहीनता की यह स्थिति देश और समाज के लिए बड़ी विकट होती जा रही है। एक तरफ़ चाटूकारों की फ़ौज है , तो दूसरी तरफ़ अतिसंवेदनशील पत्रकारों की। मेरा यह पत्र चाटूकारों के लिए नहीं बल्कि सच दिखाने और बताने वालों के लिए है। आपसे मेरी एक गंभीर शिकायत है। आपकी पत्रकारिता में तंज़ दिखता है। संवेदनाएँ दिखती हैं। क्रोध , कुंठा और झुँझलाहट दिखती है। मेरी राय में एक पत्रकार के शब्दों में निरपेक्ष सच दिखना चाहिए , सभी पक्षों की बात दिखनी चाहिए , लेकिन भावनाएँ नहीं दिखनी चाहिए , आपकी राय नहीं दिखनी चाहिए। झूठ , प्रपंच , पाखंड , अंध - भक्ति , गुंडागर्दी और सांप्रदायिक विद्वेष के इस दौर में हर सोच सकने वाला इंसान अवसादग्रस्त है , इसमें कहीं से कोई दो राय नहीं है। लेकिन आप पत्रकार हैं। अवसादग्रस्त दिखने का प्रिविलेज आपके पास नहीं ह...

प्राइवेट से मोह या पब्लिक से मुक्ति

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एक समय पर जिस BSNL/MTNL की पहुँच हर हाथ में थी, उसे प्रचारित, प्रसारित और सशक्त करने में प्रधानमंत्री किसी भी तरह की दिलचस्पी दिखाते, तो वह भी आत्मनिर्भर हो जाता और दूसरी टेलीकॉम कंपनियों से टक्कर लेता. लेकिन प्रधानमंत्री की दिलचस्पी नजाने “ जीयो” का निःशुल्क ( अथवा " सशुल्क ", जिसकी शर्तें हम आम लोगों को मालूम नहीं ) ब्रांड एंबेसडर बनने में क्यों है? सरकारी बैंकिंग का उद्धार करने के लिए उचित कदम उठाने के बजाय , अंतिम आदमी तक पहुँच रखने वाले सरकारी और सहकारी बैंकों के जाल को संकीर्ण करने का पुरज़ोर प्रयास करने में लगी इस सरकार के प्रधानमंत्री की दिलचस्पी विदेशी कंपनी PAYTM का पोस्टरबॉय बनने में क्यों है? यह सुनिश्चित करने के बजाय कि किसानों की बिक्री का प्रसार हो और वाजिब दरों पर हो , वे यह सुनिश्चित करने में क्यों लगे हैं कि किसानों को सम्मान निधि के नाम पर मामूली - सी “ रिश्वत” खिलाकर उनका अनाज बड़े व्यापारियों की मर्ज़ी पर छोड़ दिया जाए, जबकि किसान आंदोलन को बदनाम करने के ल...