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सितंबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

The world cricket wouldn't have been so successful without Jagmohan Dalmiya

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Today hundreds of crore are spent by the electronic media to buy the broadcast rights of a cricket match. Scenario wasn't the same until 1993. India had won a world cup in 1983 by then and Cricket gained a lot of popularity across India, rural and urban included. Board of Control for Cricket in India (BCCI) still paid a heavy sum for the broadcast of every single match to Prasar Bharti i.e. DD. While Jagmohan Dalmiya watched DD make a lot of money from the board as well as advertisements, it was he, who decided to bid the broadcast rights to private electronic channels - the decision that made BCCI the richest cricket board of the world. DD eventually started broadcasting cricket matches for men in blue free of cost.    Jagmohan Dalmiya, the then treasurer of BCCI made impact not only in Indian cricket but he influenced the world cricket. He was the one who argued against England that solely hosted World Cup tournaments till 1983. This created a platform for debate resulting i

बीसीसीआई को याचक से शासक बनाने वाले जगमोहन डालमिया

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न सिर्फ़ दुनिया भर में बल्कि खुद अपने देश में भी क्रिकेट को सिरमौर बनाने के लिए जगमोहन डालमिया याद रखे जाएंगे. एक वक्त था जब भारत में ही क्रिकेट मैच दिखाने के लिए बीसीसीआई प्रसार भारती को पैसे देता था. 1993 तक. तब भारत एक बार विश्वकप जीत चुका था. क्रिकेट भारतीयों के ज़ेहन में रचने-बसने लगा था और तभी सचिन के साथ-साथ कुछ नये युवा खिलाड़ी टीम में आए जिन्होंने अपने शानदार खेल की बदौलत देश और दुनिया में फतह के झंडे गाड़े. डालमिया ने लोगों की नब्ज पढ़ी थी. क्रिकेट के चढ़ते बुखार को समझा था. और उन्होंने प्रसार भारती को पैसे देने की बजाय उल्टे प्रसारण अधिकार बेचने की घोषणा की. इस एक फैसले ने बीसीसीआई को करोड़ों-अरबों रुपये दिए. दुनिया भर के टीवी चैनल देश की बढ़ती अर्थ-शक्ति को देख-समझ रहे थे जिसे भुनाने में भारतीय क्रिकेट बोर्ड कामयाब रहा. कभी क्रिकेट की एक असरहीन टीम , जिसका लक्ष्य बस हार टालने की कोशिश हुआ करता थी , किसी तुक्के से याचक से शासक नहीं बनी. जगमोहन डालमिया जब 1997 में आईसीसी के अध्यक्ष बने थे तब महज 16000 पौंड की पूंजी वाली इस संस्था को 16 मिलियन पौंड तक पहुंचाने का श्रेय

आख़िर क्यों फ़र्स्ट ल्युटिनेंट शेय हैवर और कैप्टन ग्रीस्ट जैसी महिला सैनिक हमारे पास भारत में नहीं हैं?

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- सुशांत सिंह     अमेरिकी थल सेना की फ़र्स्ट ल्युटिनेंट शेय हैवर और कैप्टन क्रिस्टन ग्रीस्ट भले ही अपने करियर में शीर्ष पर न पहुँच सकी हों , पर उन्होंने यक़ीनन पहल तो कर दी है . बीते शुक्रवार , वे 62 दिनों तक चलने वाले और बेहद मुश्किल माने जाने वाले रेंजर ट्रेनिंग कोर्स में कामयाब होने वाली पहली महिला सैनिक बनीं और उन्हें अपनी वर्दी पर लगाने के लिए वह प्रतिष्ठित रेंजर तमगा मिला जिसे पाना पुरुष सैनिकों के लिए भी आसान नहीं है . हर साल तक़रीबन 4,000 सैनिक रेंजर कोर्स का हिस्सा बनते हैं , जिनमें से महज़ 1600 इसे पूरा करने में कामयाब होते हैं . सेना के अपने पुरुष साथियों की तरह ही , जिन्हें इस प्रशिक्षण के लिए ख़ास तरह का हेयरकट ( जिसे हमारे यहाँ ’ कटोरा कट ’ भी कहते हैं ) लेना होता है , इन दोनों महिला अफ़सरों को भी अपने बाल लगभग मुंडवाने पड़े . लेकिन इसके बावजूद वे अमेरिकी सेना के स्पेशल ऑपरेशन फ़ोर्स यानी प्रतिष्ठित 75 वीं रेंजर रेजिमेंट का हिस्सा न