संदेश

किसान आंदोलन और CAA विरोधी आंदोलन का फ़र्क़

  बात   ये   नहीं   है   कि   तीनों   क़ानून   सही   थे   या   ग़लत .  कृषि   का   ककहरा   तक   न समझने   वाले   एक   इंसान   के   तौर   पर   यह   राय   बना   पाना   मेरे   लिए   मुश्किल   था .  मेरे  लिए   मामला   बस   इतना   था   कि   सरकार   कुछ   क़ानून   लेकर   आई   है   और   उनसे  प्रभावित   समुदाय   का   एक   तबका   उनका   विरोध   कर   रहा   है .  विरोध   तो   अधिकार   है .  हमारे   देश   में   एक   नया   कल्चर   शुरू   हो   गया   है .  अब   विरोध   के   ख़िलाफ़   भी   विरोध   होने   शुरू   हो   गए   हैं .  आपको   याद  होगा   कि  CAA  प्रोटेस्ट   के   ख़िलाफ़   कैसे   जगह - जगह   विरोध   प्रदर्शन   शुरू   हो   गए   थे . विरोध   के   बदले   विरोध   सिर्फ़   एक   ही   संदेश   देता   है   कि   जनता   बँटी   हुई   है .  जनता   का   बँटा   होना   शासकों - प्रशासकों   के   लिए   ऐतिहासिक  रूप   से   सुविधाजनक   रहा   है ,  लेकिन   ऐसे   विभाजनों   के   साथ   एक   मज़बूत   लोकतंत्र   की   कल्पना   कर   पाना   मुश्किल   है . किसी   क़ानून   से   समुदाय   विशेष   के   लोगों   को   अगर  

Jai Bheem का विरोध हमारे समाज के वैचारिक पतन का द्योतक है

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जिस कहानी को देखकर दिल पसीझ उठे , वही कहानी किसी की आँखों में किरकिरी कैसे बन सकती है , यह अकल्पनीय लगता है। जय भीम को लेकर हो रहा बवाल एक टीस पैदा करता है। आख़िर जिस समाज की नींव गाँधी , आंबेडकर , नेहरू और पटेल जैसे अनेक दूरद्रष्टाओं ने रखी , वह समाज वैचारिक पतन की ढलान पर इतना कैसे गिरता चला गया कि उसे एक कहानी कचोटने लग गई। क्या आप यह नहीं मानते कि पुलिस को केस बंद करने के असंवेदनशील और अन्यायपूर्ण तरीकों के बजाय वाकई में अपनी ड्यूटी करके उसके सही निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए? क्या आप यह नहीं मानते कि सरकार और प्रशासन की आँखों में सबका दर्जा बराबर होना चाहिए? क्या आप यह नहीं मानते कि चाहे आपका वोट किसी के पक्ष में पड़ा हो या विपक्ष में, यह पहलू आपको इंसाफ़ मिलने की राह में रोड़ा साबित नहीं होना चाहिए? कोई नई कहानी तो नहीं है यह! वही कहानी है जो हम देखते आए हैं। एक तबका है जो  बदक़िस्मत और  मज़लूम है। एक तबका है जो  ताक़तवर और  ज़ालिम है।   मज़लूमों की सुनने वाला कोई नहीं है , और ऐसे में     से उस तबके को