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मार्च, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कुछ क्रिकेट की, कुछ किसान की

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  3-2 से भारत ने इंग्लैंड को जो धोबीपछाड़ मारा है, उसका ख़ौफ़ अंग्रेज़ों को लंबे वक़्त तक रहने वाला है. आखिरी मैच में तो रोहित शर्मा और कोहली ने सलामी जोड़ी के तौर पर जो कलाकारी दिखाई है, उससे तो कई और टीमों के माथे पर बल पड़ गए होंगे. जब इस सफ़र का आग़ाज़ टेस्ट सीरीज़ के साथ हुआ था, तब सचिन तेंदुलकर से लेकर विराट कोहली, रोहित शर्मा और अजिंक्य रहाणे तक ने दिल को एक चोट पहुँचाई थी. जब वे बाक़ी हर चीज़ में एपोलिटिकल रहते हैं, तो एक चिंदी-सी बात पर उन्हें एकदम से कुछ दूसरे ज्ञात चाटूकारों के साथ सुर में सुर मिलाकर ट्वीट करने की ज़रूरत क्यों पड़ी. किसी का एक खुले मंच पर किसी के पक्ष या विरोध में कुछ कह देना कोई इंटरनेशनल साज़िश कैसे हो सकती है? साज़िश का तो मतलब ही यही होता है न कि किसी के पीठ पीछे किसी को नुक़सान पहुँचाने, फँसाने आदि के इरादे से प्लानिंग करना.  अगर हम ग्लोबल होने की होड़ में हैं, तो आंदोलनों को भी ग्लोबल सपोर्ट मिलेगा. यह कोई हाय-तौबा मचाने वाली चीज़ नहीं है.  बहरहाल, क्रिकेट फ़ैन तो फिर भी हूँ. मैच देखना फिर भी पसंद है. मुँह पर रहता था कि ट्वीट करने वाला एक भी बैट्समैन न चले, लेकिन फिर भी इं

प्राइवेट से मोह या पब्लिक से मुक्ति

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एक समय पर जिस BSNL/MTNL की पहुँच हर हाथ में थी, उसे प्रचारित, प्रसारित और सशक्त करने में प्रधानमंत्री किसी भी तरह की दिलचस्पी दिखाते, तो वह भी आत्मनिर्भर हो जाता और दूसरी टेलीकॉम कंपनियों से टक्कर लेता. लेकिन प्रधानमंत्री की दिलचस्पी नजाने “ जीयो” का निःशुल्क ( अथवा " सशुल्क ", जिसकी शर्तें हम आम लोगों को मालूम नहीं ) ब्रांड एंबेसडर बनने में क्यों है? सरकारी बैंकिंग का उद्धार करने के लिए उचित कदम उठाने के बजाय , अंतिम आदमी तक पहुँच रखने वाले सरकारी और सहकारी बैंकों के जाल को संकीर्ण करने का पुरज़ोर प्रयास करने में लगी इस सरकार के प्रधानमंत्री की दिलचस्पी विदेशी कंपनी PAYTM का पोस्टरबॉय बनने में क्यों है? यह सुनिश्चित करने के बजाय कि किसानों की बिक्री का प्रसार हो और वाजिब दरों पर हो , वे यह सुनिश्चित करने में क्यों लगे हैं कि किसानों को सम्मान निधि के नाम पर मामूली - सी “ रिश्वत” खिलाकर उनका अनाज बड़े व्यापारियों की मर्ज़ी पर छोड़ दिया जाए, जबकि किसान आंदोलन को बदनाम करने के ल