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अधिकारी बनाकर नहीं सिपाही बनाकर ही मुमकिन है सेना में महिला-सशक्तिकरण

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हाई स्कूल से लेकर कॉलेज तक अपने पांच साल मैंने एनसीसी में बिताए. यह पहला ऐसा मंच था जहां मुझे लड़कियों के साथ प्रशिक्षण पाने का मौक़ा मिला. जहाँ यह समझने का मौक़ा मिला कि लड़कियों को नाज़ुक, कमज़ोर और अबला मानने वाली धारणाएँ महज़ पूर्वग्रह है. जहाँ लड़कियों से भी उतनी ही कड़ी मेहनत करवाई जाती थी जितना लड़कों से और उन्हें भी सज़ा मिलने पर भारी राइफल उठाकर लड़कों की ही तरह मैदान के चक्कर लगाने पड़ते थे. मैंने खुद भी पैरासेलिंग और पैराग्लाइडिंग की है और उन्हें भी उसी दक्षता के साथ यह सब करते हुए देखा है.  एनसीसी यानी नैशनल कैडेट कोर्प्स का गठन स्कूलों और कॉलेजों में भारतीय सेना में शामिल होने की तमन्ना रखने वाले विद्यार्थियों के लिए और आपातकालीन स्थितियों में सेना से जुड़े मानव-संसाधन संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया गया था और सेना की ही तर्ज़ पर इसमें भी थल, जल और वायु तीनों इकाइयाँ होती हैं. इस प्रशिक्षण के दौरान वे भी हमारे साथ फ़ायरिंग करती थीं, बाधा-दौड़ में भाग लेती थीं, सुबह चार बजे लाइन-अप होकर दोपहर के दो बजे तक एक उंगली पर सेल्फ लोडिंग राइफल (एसएलआर) संभाले परेड करती थीं जो फिर