गोदी-विरोधी पत्रकारों के नाम एक खुला पत्र

 
प्रिय गोदी-विरोधी पत्रकारगण,


एक जागरूक नागरिक और मीडिया का छात्र होने के नाते, मौजूदा परिदृश्य मुझे बहुत ही चिंतित करते हैं। संवादहीनता की यह स्थिति देश और समाज के लिए बड़ी विकट होती जा रही है।


एक तरफ़ चाटूकारों की फ़ौज है, तो दूसरी तरफ़ अतिसंवेदनशील पत्रकारों की। मेरा यह पत्र चाटूकारों के लिए नहीं बल्कि सच दिखाने और बताने वालों के लिए है। आपसे मेरी एक गंभीर शिकायत है।


आपकी पत्रकारिता में तंज़ दिखता है। संवेदनाएँ दिखती हैं। क्रोध, कुंठा और झुँझलाहट दिखती है। मेरी राय में एक पत्रकार के शब्दों में निरपेक्ष सच दिखना चाहिए, सभी पक्षों की बात दिखनी चाहिए, लेकिन भावनाएँ नहीं दिखनी चाहिए, आपकी राय नहीं दिखनी चाहिए।


झूठ, प्रपंच, पाखंड, अंध-भक्ति, गुंडागर्दी और सांप्रदायिक विद्वेष के इस दौर में हर सोच सकने वाला इंसान अवसादग्रस्त है, इसमें कहीं से कोई दो राय नहीं है। लेकिन आप पत्रकार हैं। अवसादग्रस्त दिखने का प्रिविलेज आपके पास नहीं है।


हमें तो सिखाया गया था कि पत्रकारों की चमड़ी मोटी होनी चाहिए। काल या परिस्थिति चाहे जो भी हो, आपकी वस्तुनिष्ठता और निरपेक्षता बनी रहनी चाहिए।


सही पत्रकारिता भी ग़लत रुख़ ले चुकी है। मुझे लगता है कि आत्ममंथन की ज़रूरत आपको भी है। क्या आप पत्रकारिता का धर्म निभा रहे हैं? क्या आप अपनी अपीयरेंस, अपने शब्दों और अपने हाव-भाव के ज़रिए अपनी फ़्रस्ट्रेशन ज़ाहिर नहीं कर रहे?


मैं आप सबका आदर करता हूँ और आप सबकी बातें सुनता हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि एक पत्रकार के तौर पर आपकी चमड़ी इतनी मोटी नहीं है कि आपको पत्रकार बने रहना चाहिए। आप बुद्धिजीवी हैं, विचारक हैं, जानकार हैं, मगर आप पत्रकार नहीं रहे। 


करण थापड़ और उनके भावशून्य मगर सीधे और सधे सवालों से आप सबको कुछ सीखने की ज़रूरत है।


सादर प्रणाम

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