कुछ क्रिकेट की, कुछ किसान की

 


3-2 से भारत ने इंग्लैंड को जो धोबीपछाड़ मारा है, उसका ख़ौफ़ अंग्रेज़ों को लंबे वक़्त तक रहने वाला है. आखिरी मैच में तो रोहित शर्मा और कोहली ने सलामी जोड़ी के तौर पर जो कलाकारी दिखाई है, उससे तो कई और टीमों के माथे पर बल पड़ गए होंगे.


जब इस सफ़र का आग़ाज़ टेस्ट सीरीज़ के साथ हुआ था, तब सचिन तेंदुलकर से लेकर विराट कोहली, रोहित शर्मा और अजिंक्य रहाणे तक ने दिल को एक चोट पहुँचाई थी.


जब वे बाक़ी हर चीज़ में एपोलिटिकल रहते हैं, तो एक चिंदी-सी बात पर उन्हें एकदम से कुछ दूसरे ज्ञात चाटूकारों के साथ सुर में सुर मिलाकर ट्वीट करने की ज़रूरत क्यों पड़ी. किसी का एक खुले मंच पर किसी के पक्ष या विरोध में कुछ कह देना कोई इंटरनेशनल साज़िश कैसे हो सकती है? साज़िश का तो मतलब ही यही होता है न कि किसी के पीठ पीछे किसी को नुक़सान पहुँचाने, फँसाने आदि के इरादे से प्लानिंग करना. 


अगर हम ग्लोबल होने की होड़ में हैं, तो आंदोलनों को भी ग्लोबल सपोर्ट मिलेगा. यह कोई हाय-तौबा मचाने वाली चीज़ नहीं है. 


बहरहाल, क्रिकेट फ़ैन तो फिर भी हूँ. मैच देखना फिर भी पसंद है. मुँह पर रहता था कि ट्वीट करने वाला एक भी बैट्समैन न चले, लेकिन फिर भी इंतज़ार उनके अच्छा खेलने का ही रहता था.


जब वे चल नहीं पाते थे, तो दिल से यही बात निकलती थी कि और करो ट्वीट, लेकिन वे टच में दिखाई देते थे तो एक और शतक की उम्मीद बँधने लगती थी.


लंबा पड़ाव अहमदाबाद में था. दो टेस्ट मैच और पाँच टी20. यहाँ तो अलग ही गुल खिल रहे थे. 


“आयरनी” जिसे हिन्दी में विडंबना कहते हैं, उसका अहमदाबाद से उत्कृष्ट उदाहरण मैंने जीवन में पहले कभी नहीं देखा. भव्यता की हर कसौटी पर खरा उतरने वाले स्टेडियम का नामकरण नरेन्द्र मोदी स्टेडियम के रूप में हुआ है और जिसके दोनों एंड का नाम क्रमशः रिलायंस और अडानी एंड है. 


एक ऐसे समय में, जब किसान देश की मोदी सरकार से शिकायत कर रहे हैं कि आप अंबानी और अडानी को फ़ायदा पहुँचाने के लिए कृषि क़ानूनों को उनकी ज़रूरत और उनके फ़ायदे के हिसाब से ढाल रहे हैं और हमारे हितों की सुरक्षा का न तो कोई इंतज़ाम किया जा रहा है, न आपके इरादों से ऐसे कोई संकेत मिलते हैं, तब अहमदाबाद के एक ऐसे स्टेडियम में भारत खेल रहा है जिसमें मोदी, रिलायंस और अडानी तीनों हैं.


एक से एक धुरंधर गेंदबाज़ों की एक से एक सटीक गेंद को जब मर्ज़ी बाउंड्री टपा देने में माहिर अपने उन चहेते खिलाड़ियों को किसी के हाथों की कठपुतली बनते हुए देखना बड़ा वियर्ड था. इतनी नाराज़गियों के बीच मोदी, रिलायंस और अडानी का नाम एकसाथ एक स्टेडियम में देखना बड़ा वियर्ड था. सचिन, रोहित और विराट को कोसना पर दबे मन से उनके अच्छी पारी खेलने की ख़्वाहिश करना बड़ा वियर्ड था.


बस एक चीज़ वियर्ड नहीं थी. कोहली की अलौकिक वापसी. जिस अंदाज़ में उन्होंने तीन नॉटआउट पारियाँ खेली हैं, वह अंदाज़ सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्हीं के पास है. जब कोहली का बल्ला चलता है, तो चौके, छक्के तो लगते ही हैं, लेकिन वे मैदान के सभी नौ फ़ील्डर को दौड़ा-दौड़ाकर थकाते भी बहुत हैं. मज़ेदार है उनका अंदाज़.


खिलाड़ियों से प्रॉब्लम हो रही है, क्रिकेट स्टेडियम के नाम से कोफ़्त हो रही है, लेकिन उसी मैदान पर उन्हीं खिलाड़ियों के साथ जब टीम जीतती है, तो बाँछें जो शरीर में जहाँ कहीं भी हैं, खिल उठती हैं.

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